अत: हरी हाइड्रोजन को स्वच्छ ईधन के साथ- साथ तरल और जीवाश्म ईधनो के लिए एक संभावित विकल्प के रूप में देखा जाने लगा है| इसकी सबसे विशेष बात यह है की इसके उपयोग के बाद उपोत्पाद के रूप में सिर्फ जल ही बनता है जिसमे यह पूरी तरह से प्रदूषण रहित होता है| पर्यावरण के बेहद अनुकूल हाइड्रोजन का उपयोग ट्रेन संचालन में किया जाने लगा है विश्व के विभिन्न देशों दवरा हाइड्रोजन ट्रेन चलाना हरित रेलवे की दिशा में उठाया जा रहा एक महत्वपूर्ण कदम है| इस दिशा में पहला कदम जर्मनी ने उठाया है और अगस्त-2022 में दुनिया की पहली हाइड्रोजन ट्रेन का संचालन शुरु कर दिया है| जर्मनी के अलावा ब्रिटेन, जापान और पोलैंड में हाइड्रोजन ईधन वाली ट्रेन को चलाने का प्रयास पूरे होने कि स्थिति में है | भारत ने इस साल के अंत तक देश में हाइड्रोजन से चलने वाली ट्रेनों के शुरुआत की घोषणा कर दी है| प्रमुख रेल सिस्टम इंट्रीग्रेटर, मेधा सर्वा ड्राइब्स और बलार्ड पॉवर सिस्टम को भारत कि पहली हाइड्रोजन संचलित ट्रेनों को विकसित करने के लिए भारतीय रेलवे दवरा अनुबुन्धित किया गया है रेलवे के अनुसार मेधा सर्वा ड्राइब्स को 70 करोड़ रूपये की अनुमानित लागत से हाइड्रोजन ईधन सेल आधारित तकनीक विकसित करने का उतरदायित्व सौपा गया है |बलार्ड पॉवर सिस्टम ने 2023 में ईधन सेल मोड्यूल वितरित करने की योजना बनाई है| जबकि नई हाइड्रोजन संचलित ट्रेनों को 2024 तक सेवा में प्रवेश करने की आशा की जा रही है| भारतीय रेलवे दवरा स्वदेशी तकनीक के साथ विकसित हाइड्रोजन संचालित यात्री ट्रेन अपनी तरह की पहली स्वदेशी ट्रेन होगी|
हाइड्रोजन ट्रेन में ईधन के रूप में हाइड्रोजन का उपयोग किया जाता है| इसमें उर्जा उत्पादन करने के लिए उसकी छत पर ऑक्सीजन के साथ हाइड्रोजन का भंडारण किया जाता है| इन ट्रेनों में आवश्यक विधुत कि आपूर्ति ईधन सैल के माध्यम से की जाती है, जो वायु में उपस्थित ऑक्सीजन के साथ ट्रेन की छत पर भंडारित हाइड्रोजन से सयुक्त होकर उर्जा उत्पन करती है| इस प्रक्रीया में कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन बिलकुल भी नहीं होता है| बल्कि इनसे वाष्प और जल का उत्सर्जन होता है| हाइड्रोजन ट्रेन में उर्जा का भंडारण करने के लिए बैटरी या सुपर केपेसिटर लगाए जाते है| ये हाइड्रोजन ईधन के पूरक होते है, जो ट्रेन को गति से आगे बढाने में सहायक होते है| हाइड्रोजन ट्रेन के परिचालन में जो भी उष्मा उत्पन्न होती है, उसका उपयोग ट्रेन के उष्मायान और वातानुकूलन प्रणालियों को विधुत प्रदान करने के लिए किया जाता है| हाइड्रोजन ट्रेन लगभग 140 किमी/घंटा की अधिकतम गति से 1000 किलोमीटर तक चल सकती है| देखा जाए तो मात्र एक किलोग्राम हाइड्रोजन ईधन लगभग 4.5 किलोग्राम डीज़ल ईधन के बराबर होता है| हाइड्रोजन ट्रेन बिलकुल भी शोर नहीं करती है| हाइड्रोजन ईधन से चलने वाले सभी बड़े या छोटे रेल वाहनों को हाइडरेल के रूप में वर्गीकृत किया जाता है | इनमे ईधन का'उपयोग ट्रैक्शन मोटर, सहायक प्रणालियों या दोनों के लिए किया जाता है| हाइडरेल शब्द का पहली बार उल्लेख एंटी एंड टी के रणनीतिक योजनाकार स्टेन थोम्फसन दवरा किया गया था | उन्होंने कैंब्रिज में अमेरिका परिवहन विभाग के वोल्पे ट्रांसपोर्टेशन सिस्टम सेंटर में "द मूरेसविले हैद्रिल इनिशिएटिव" विषय पर अपने व्याखान के दौरान हाईडेल शब्द का प्रयोग किया था| पहला वार्षिक अन्तराष्ट्रीय हाईडेल सम्मेलन-2005 में उतरी कैरोलिना में आयोजित किया गया था|
हाइड्रोजन ट्रेन आने से सबसे बड़ा लाभ प्रदूषण को कम करने की दिशा में होंगा ऐसा होने पर लगभग 11 मीट्रिक टन वार्षिक कार्बन डाई ऑक्साइड उत्सर्जन को कम और प्रति वर्ष लगभग एक मीट्रिक टन पर्टिकुलैट मैटर को समाप्त किया जा सकेगा|
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