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Why is Buddha religion so great

    

                  क्यों बौद्व धर्म इतना महान है।      

       

 सिद्धार्थ गौतम का जन्म 563 ईसा पूर्व वैशाख पूर्णिमा के दिन महाराज शुद्धोदन तथा माता महामाया के घर मे हुआ था।  राजा शुद्धोदन  कपिलवस्तु के महाराज थे।  सिद्वार्थ गौतम के जन्म के समय ही असित मुनि ने यह भविष्यवाणी कर दी थी कि यदि यह बालक राजा बना तो चक्रवर्ती सम्राट कहलायेगा तथा पूरे भारतवर्ष पर राज करेगा नही तो यह सन्यासी बना तो सम्यकसम्बुद्व बनेगा

 अतः इस प्रकार असित मुनि की भविष्यवाणी सत्य सिद्व हुयी गौतम बुद्व परिवज्रक बने। गौतम बुद्व द्वारा गुहत्याग करने के पश्चयात जगंल मे 12 वर्ष तक कठिन तपस्या तथा अन्य साधनायें की तत्पष्चात उन्हें पीपल के वृक्ष के नाचे संबेाधि की प्राप्ति हुयी बेाधि प्राप्त होने के पश्च्यात  बु़द्व ने प्रथम उपदेश अपने परिव्राजको जो उनके पांच शिष्य थे को सारनाथ वाराणसी में दिया।

बु़द्व का प्रथम धर्मो उपदेश ( पवित्रता का पथ

पवित्रता के पथ के अनुसाार अच्छे जीवन आदर्श के पाच मापदड है 1. किसी की हत्या न करना 2. चोरी न करना 3. व्यभिचारी न होना 4. झूठ न बोलना 5. नशीली वस्तुओं का सेवन न करना।

सम्यक मार्ग का धर्मो उपदेश 

1. आदमी केवल सत्य बोले 2. आदमी असत्य न बोले 3. दूसरो की बुराई न करना 4. परनिंदा से बचना 5. दया भवना तथा विनम्र वाणी का प्रयोग 6.  क्रोध व गाली गलैच से बचना 7 किसी आदमी को व्यर्थ की मूखर्तापूर्ण बातों में नही पडना चाहिए 8. अंधविश्वास व अलौकिताओं का त्याग।

शील का मार्ग

1. शील ( नौतिक स्वभाव) 2. दान( बदले मे किसी प्रकार की अपेक्षा न करना) 3. उपेक्षा ( अनासक्ति) 4. नैश्क्रय (सांसारिक काम भोगों का त्याग) 5. वीर्य ( सम्यक् प्रयत्न) 6. शांति (क्षमा शीलता) 7. सत्य (सत्यवादी होना) 8. अधिश्ठान  (अपने उद्वेष्य तक पहुचना) 9. करूणा  (सभी प्रणियों के प्रति प्रेम) 10. मैत्री (सभी प्राणियों के प्रति भाई-चारा)

कुलीनों तथा घाम्मिक गुरूओं की घम्मदीक्षा

यश कुल-पुत्र की प्रवज्या- उस समय वाराणासी में एक  श्रेटी का पुत्र रहता था जिसका नाम यश था। वह तरूण था। उसका पूरा समय नृत्य-गाान सुरा-पान और काम-भोगों में ही व्यतीत होता था। समय बीतने पर उसे विरक्ति की भावना ने आ घेरा। उसकी चिंन्ता यह थी कि वह उन रंगरलियों से कैसे छुटकारा पा सकता है जिस जीवन को वह व्यतीत कर रहा था। बुद्व ने उसकी समस्या का समाधान किया तथा अपने संघ में शामिल कर लिया उसके  साथ ही उसके चार मित्रों को भी संघ में शामिल कर लिया।  

कस्सप- बन्दुओ  की प्रवज्या

 वाराणसी में कस्यप नाम का एक परिवार निवास करता था। उस परिवार में तीन पुत्र उरूवेल-कस्सप नदी-कस्यप और गया-कस्सप ने भागवान बुद्व से धम्म की दीक्षा ली तथा उनके संघ मे सम्मलित हो गये

श्रेश्ठी अनाथपिण्डिक को धम्मदीक्षा

 सुदत्त कोसल राज्य की राजधानी श्रावस्ती का एक नागारिक था। कोसल पर राजा पसेनदि शासन करता था। इसलिए वह अनाथपिण्डिक नाम से विख्यात था। उसकी इच्छा धार्मिक विषय पर उपदेश सुनने की इच्छा प्रकट की। गौतम बुद्व ने उसकी धम्मदीक्षा की समस्या का समाधान किया तथा उसे अपने संघ मे समलित कर लिया।

राजवैध जीवक को धम्मदीक्षा- 

जीवक राजगृह की एक वैश्या सालवती का पुत्र था। जंन्म के समय ही उसे कूडे की एक ढेरी मे फेंक दिया गया था। राजकुमार अभय द्वारा उसका पालन पोषण किया। जीवक वैध को बुद्व द्वारा धम्म की दीक्षा दी तथा अपने कार्य वैध मे रहकर लेागों की सेवा करने को कहा

उत्तरावती के बाहाणों की धम्मदीक्षा-

 उत्तरावती के बाहाण  यज्ञ-यज्ञादि मे विश्वास करते थे। बुद्व ने उन्हे बताया की यह यज्ञ-यज्ञादि ही उनकी परेशानी का कारण है। बुद्व ने यज्ञ-यज्ञादि के कार्या का त्याग करने को कहा तथा अपने धम्म की दीक्षा दी

निम्नस्तर के लोगों की प्रवज्या-

( उपालि नाई की प्रवज्या- बुद्व ने सर्वप्रथम उपालि नाई  को ही प्रव्रजित और उपसंपन्न किया। इसके बाद उन दूसरे शाक्य   कुल-पुत्रों को क्रम से भिक्खुसंघ मे दीक्षित किया।

सुनील मेहतर की प्रवज्या

राजगृह में एक सुनीत नाम का सफाई-कर्मी रहता था। गृहस्थों द्वारा सडक के किनारे फेका गया कूडा-कचरा साफ करना ही उसकी जीविका का साधन था। यही उसका वंषानुगतहीन-जीवका था। गौतम बुद्व द्वारा नगर भिक्षा के दौरान सुनीत को धम्म दीक्षा दी तथा अपने संघ में शामिल कर लिया।

सोपाक तथा सुप्पिय अछूतों की प्रवज्या-

  सोपाक श्रीवस्ती) का एक अछूत बालक था। जो शमशान मे एक रखवाले के साथ रहता था।  एक दिन भगवान बुद्व शमशान के पास से गुजर रहे थे। सोपाक उन्हे देख कर उनके पास चला आया। भगवान को  अभिवादन कर  उसने  भगवान से संघ मे प्रविष्ट होने की अनुज्ञा मांगी। उसकी जाति पर घ्यान न देते हुए भगवान बुद्व ने उसे संघ में प्रवेश दे दिया तथा उसे धम्म और विनय की दीक्षा दी।

सुमंगल तथा अन्य निम्नजातियों की प्रवज्या -

  सुमंगल-श्रीवस्ती का एक किसान था। वह दराती, हल, और कुदाली से खेत में काम करके अपनी जीविका कमाता था। उसके द्वारा भगवान बुद्व से संघ मे प्रवेश की अनुमति चाही। बिना उनकी जाति और उनकी पूर्व-परिस्थिति को महत्व देते हुए भगवान बुद्व ने सभी को संघ में प्रवेश दे दिया।                                                                                                                             

   स्त्रियों की प्रवज्या                                                                            

    महाप्रजापति गौतमी-यषोधरा तथा उनके साथ की स्त्रियों की प्रवज्या -

गौतम बुद्व ने महाप्रजापति गौतमी ने प्रवज्या-उपसंपदा ग्रहण की और उनके साथ ही अन्य पाच सौ शाक्य  स्त्रियों ने भी जो महाप्रजापति गौतमी के साथ चल कर आई थी प्रवज्या-उपसंपदा ग्रहण किया । इस प्रकार प्रव्रजि-उपसंपन्न होकर प्रजाप्रति गौतमी तथागत के सामने आई और तथागत को अभिवादन करके एक ओर खडी हो गई। तथागत ने उन्हे  अपने धम्म और विनय की शिक्षा दी।                                       

प्रकृति नामक चांडालिका की प्रवज्या- 

चांडालिका भिक्खार्थ नगर में निवास करती थी। उस समय आनंद भिक्षा हेतु भिक्खार्थ नगर गये हुये थे। रास्ते में उन्हे प्यास  का अनुभव हुआ और उन्होने  जाति को ध्यान मे न रखकर चांडालिका से पीने हेतु पानी मांगा। उनके व्यवहार को देखकर चांडालिका उन पर समोहित हो गई तथा उनसे शादी करने हेतु जिद कर बैठी । जब चांडालिका तथागत बुद्व के समक्ष पहुची तो  बुद्व ने उन्हे समझाया  की यह शरीर में ऐसा कुछ नही है जो पाने के  लायक है जिससे चांडालिका संतुष्ट हो गई और धम्म में दीक्षा चाही गौतम बुद्व ने दीक्षा  दी।                                                                      

 पतितों तथा अपराधियों की धर्मदीक्षा-

राजगुह मे एक  अत्यंत असंयत  आदमी  रहता था जो न तो  अपने माता-पिता का आदर नही करता था और न ही  दूसरे बडे-बूढो का जब उससे कोई पाप हो जाता था तो  वह सूर्य चन्द्रमा तथा अग्नि-देवता की ही पूजा  किया करता था । तीन साल तक लगातर पूजा मे इतना शारीरिक कष्ट उठाने पर भी उसे किसी प्रकार की शांति नही हुई । तथागत  गौतम ने उसे समझया  की इनसे  कुछ प्राप्त नही  तथा उन्होने उनसे अहिंसा का मार्ग अपनाने को कहा तथा अपने धम्म की दीक्षा दी।                                                                                                                        

डाकू अंगुलिमाल की प्रवज्या- 

गौतम बुद्व ने डाकू अंगुलिमाल को समझाया की हिंसा से  मनुष्य का मन  दुखी रहता है तथा उन्हाने उनसे हिंसा का मार्ग त्यााग कर  अंहिसा  के मार्ग पर चलने हेतु कहा तथा अपने धम्म की दीक्षा

गौतम बुद्व ने कुसिनारा (कुशीनगर) में रात्रि के तीसरे पहर में कुसिनारा के उपवन मे साल वृक्षों के मध्य तथागत का परिनिर्वाण हुआ। 
इस प्रकार गौतम बुद्व ने मनुष्य के जाति, धर्म, मजहब को न देखकर लोगों के लिये नया पथ प्रदर्षित किया। जो सभी लोगो के लिये मुक्तिदायी बना। 

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