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धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष

                               धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष

                         


            आप अपने जीवन में आनंदमय और सार्थक जीवन कैसे जिये इस हेतु प्राचीन हिन्दू शास्त्रों इसके चार स्तंभों (चतुर-वर्ग) धर्म, अर्थ, काम,मोक्ष का वर्णन किया गया है- जहां धर्म सम्पूर्ण सामज के प्रति दायित्व से संबंधित है, अर्थ, सफलता से सबंधित है काम, घनिष्टता कामुक और यौन सुख से सबंधित है मोक्ष, बंधन और सांसारिक पीड़ा से मुक्ति पाने से संबंधित है ! धर्म, शब्द का उल्लेख पहले " ऋग्वेद " में हुआ है लेकिन एक हज़ार स्रोतों के संग्रह में उनका सौ बार से भी कम उल्लेख हुआ है वहा धर्म का उल्लेख "आधार, स्थिरता और शासन " के संदर्भ में हुआ है! उपनिषद में भी यह प्रमुख विषय नही है!


धर्म का स्पष्ट अर्थ, पहली बार, 800 ईशा पूर्ब में रचे गये "सतपथ ब्राहाण " में समझया गया है! यहाँ बताया गया है की धर्म के आभाव में मत्श्य न्याय का जन्म होता है! मत्श्य न्याय को हम जंगल के नियम से जानते है! इस नियम के अनुसार शक्तिशाली प्राणी शक्तिहीन को खा जाता है!
इस प्रकार धर्म यह बातता है की शक्तिशाली लोगों को शक्तिहीन लोगों की देखभाल करनी चाहिऐ सामंतवादी व्यवस्था में, धर्म का तात्पर्य है की धनवान बहुसंख्यक दीन अल्पसंख्यको का ख्याल रखे!
वेदों के अनुसार अर्थ का सबध अन्न, वस्तु, और सेवाओं के बनाने से है! जबकी काम का सबध भूख मिटने से है! धर्म में हम एक दूसरे की भूख पर ध्यान देते है और मोक्ष में, हम अपनी भूख से मुक्त होते है! हम अपने भूख से मुक्ति तभी पा सकते है जब हम भूख से परे जाकर "उदधार और दानशील" बनते है ! अर्थात् हम चतुवर्ग को हम इस प्रकार समझ सकते है- धर्म- जहां हम दूसरे के उपभोग के लिये उन्हें मूल्य देते है! अर्थ- जहां हम मूल्य का निर्माण करते है! काम-जहां हम मूल्य का आनंद उठाते है! मोक्ष- जहां हम मूल्य के उपभोग की आवश्यकता से परे जाते है! आधुनिक युग के न्यूरोसाइंटिस्ट (neuroscientists) अब जान रहे है की शरीर में विधमान अलग-अलग हार्मोन हमे आनंद देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है किसी प्रकार से यह हार्मोन हिन्दू धर्म के पुरुषार्थ के चार स्तम्भ से भी जुड़े है! उदा.1. सेरोटेानिन- आनंद के साथ जुडा हुआ है! और उसके आभाव के कारण निराशा व डिप्रेशन होता है! 2. डोपामाइन- हममे उलास या सफलता की भवाना जगता है! और उसके आभाव में हम निर्थक लगतेहै! 3. अक्सीटोसीन- घनिष्टता के समय निकलता है! 4.एंड्रोफिल- कसरत करते समय या तनाव के समय या हँसते समय निकलता है यह एंड्रोफिल हममे प्रसन्नता के भाव को जगता है! आनंद की यह आधुनिक सरचना प्राचीन हिन्दू धर्म- ग्रंथो बताये गये चार स्तंभ के समान है- धर्म- सन्तुष्टी में योगदान करता है! अर्थ- सफलता और सफलता के उल्लास से संबंधित है! काम- प्रसन्नता और घनिष्टता से संबंधित है! मोक्ष - क़िसी वस्तु में बधे ना रहने से मिलने वाले चैन सेसंबंधित है! आनंदित रहने के लिये इन चारो का होना आवश्यक है! यदि इन चारो पुरुषार्थ के प्रतेक स्तंभ को न्यूरोसाइंटिस्ट दवरा पहचाने गये आनंद के हार्मोन से जोड़ा जा जाए तो हम पाते है! धर्म- उदारता से संबंधित है- समाज का दायित्व चुकाने दुसरों का पालन- पोषण करने, असहाय लोगों को देखभाल करने और माता-पिता अपने बच्चों की देखभाल करने से संबंधित है! जिससे हम धर्म का हार्मोन कहतें है, धर्म के पालन से सेरोटेानिन हार्मोन निकलता है! अर्थ- चुनतियो पर विजय पाने और अपने लक्ष्य तक पहुचने और उसे पार करने से संबंधित है! इसलिये डोपामाइन को अर्थ का हार्मोन कहा जा सकता है, और सभी बाधाओ के बावजुद नौकारी- पेशा में सफलता पाते है! ख़िलाड़ी इसी हार्मोन की मदंद से खेल में अपना योगदान देते है, इस प्रकार अर्थ के पालन से डोपामाइन निकलता है ! काम- घनिष्टता से दुसरो को चाहने और दुसरों से संबंधित है वह बच्चों, परिवार और मित्रो के साथ प्रेम जत्ताकर सुरक्षित अनुभव करने के साथ जुडा हुआ है! इस प्रकर हम काम के पालन से अक्सीटोसीन हार्मोन निकलता है! मोक्ष- दुःख और पीड़ा से छुटकारा कैसे पाया जाए दुःख को दूर करने के लिये शरीर में एंड्रोफिल नामक हार्मोन निकलता है! शरीर में तनाव होने पर निकलने वाला यह मोक्ष का हार्मोन होता है! मोक्ष के पालन से एंड्रोफिल हार्मोन निकलता है!
वर्तमान समय में एक सतुलित , संतोषजनक जीवन जीने के लिये  और दुसरो की देखभाल करने , भौतिक सफलता प्राप्त करने, घनिष्टता से प्रसन्नता पाने और अंत में सांसारिक दुःख से स्वयं को मुक्त करने की क्षमता के बीच अच्छे सामजस्य की आवश्यकता है , यह जरुरी नही है कि हर कोई न्यूरोसाइंटिस्ट और हिन्दू धर्म के आनंद के चार- स्तंभ  के संबंधो  को स्वीकार करेगा!





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