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अति प्रभावकारी लोगों की 7 आदतें

 

                         अति  प्रभावकारी लोगों की 7 आदतें



 प्रायः कुछ लोग अपने जीवन में सफल  होते है, जबकी कुछ लोग  नही जबकी मेहनत और प्रयास दोनो ही करते है,  कुछ  कम्पनीया मामूली स्तर से ऊचाईयों को छु लेती है जबकी कुछ अन्य लड़खड़ा  कर गिर जाती है, और कुछ लोग आर्थिक आभव होने के  के कारण भी  अच्छी सफलता  प्राप्त करते है,  जबकी  कुछ लोग आर्थिक   स्थिति  अच्छी  होने के बाद भी  सफलता प्राप्त नहीं कर पातें है,  ऐसा  क्यों ?  इन सबके पीछे एक  मुख्य वजह  मूल सिद्धांत  होते  है! 

 कोई भी व्यक्ति या उपक्रम तब तक जीवन में सफलता प्राप्त नहीं कर सकते है  जब तक उनके पास सिद्धांत का ऐसा प्रकाश पुंज न हो जिसका  उन्हें  संरक्षण करना है जिसके दम पर  वह अपने जीवन में  आगे बढ़  सके और  तेजी से बदलती  दुनिया में उसका भरोसेमंद  मागदर्शन  प्रदान कर सके!

यदि आप अपने जीवन में सफलता प्राप्त करना चाहते है तो अपने  लिये ऐसा  मूल  सिद्धांत तैयार करे  जिस पर आप चल सके तथा उस सिद्धांत पर अथक रूप से  सुधार करे  तथा  निरंतर आत्मानवीनकरण की ख़ोज जारी रखे 

अति प्रभवकारी लोगो की आदतों  का सबसे महत्वपूर्ण पहलू  यह है की  इसमें सफलता अर्जित करने  के  बजाय  चरित्र निर्माण पर अधिक बल दिया गया है सी वजह  से यह किताब ना  केवल  ब्यवहारिक है बल्की अथह ज्ञान से परिपूर्ण  भी  है अनुशासन  के  बिना  प्रभावशाली  होना सम्भव  नहीं है और चरित्र  के बिना  अनुशासन  संभव नहीं  है!

 आज  हम अपने  जीवन में  सफल होने के लिये  हम 7  सिद्धांत को देखंगे जो  महान  लोगो द्वारा  अपने  जीवन में अपनाये  गये  है  इस  समझने  से पूर्ब आपको  पैरेडाइमस की शक्ति  जानना  आवश्यक है.

पैरेडाइमस   क्या है-    पैरेडाइमस चरित आधरित नीति शास्त्र , ब्यक्तित्व  आधारित नीति शास्त्र  सामाजिक  पैरेडाइमस  का उदाहरण है, पैरेडाइमस   शब्द   ग्रीक भाषा से आया  है  यह  वैज्ञानिक  शब्द  है  इसका प्रयोग   सिद्धांत  अनुमति,  मान्यता या   दृष्टिकोण के अर्थ के  लिये किया जाता  है,  यह वह तरीका  है जिसके  माध्यम  से  हमे  दुनिया  को देखते  है  इसका  संबध महसूस  करने  की  क्षमता व समझाने और   विशलेषण करने से  है!

   मान  लीजिए  आप किसी  ऐसी जगह  आप पर  घुमने  निकले  है वह  जगह  आपके  लिय  नईं  है और  आपके  पास नक्शा  है , तो  वह जगह नयी  होने  के  बाबजूद भी आप  नक्से  के  प्रयोग   से  सही  जगह  पहुच  जायेगे  परन्तु यदि आपके  पास नक्शा  न हो    या गलत  नक्शा  हो  तो आप पूरा  दिन   भटकते  रहगे भले ही आप  अपने  नजरिये  में कितना ही सुधार करे ले  और आप कितना ही अधिक  सकरात्मक  तरीके  से सोचे   आप  तब  भी  उस जगह पर नहीं पहुच  पायेंगे  परन्तु  शायद  आपको इसकी परवाह  नहीं होगी  आप जहा  भी  जायेंगे आप खुश  रहेंगे , परन्तु यहाँ  मुददे  की बात  यह  है की  आप अभी भी  भटक रहे होंगे  यहा मूलभूत समस्या का आपके व्यवहार व  नजरिये  से कोई लेना- देना  नहीं है  इसका  सम्बन्द   इस बात से पूरा- लेना देना है की आपके पास नक्शा  सही हो  पैरेडाइमस   हमारे  नजरिये और व्यवहार  के स्रोत है  बिना पैरेडाइमस  के हम   अपने जीवन  में  अखंडता व सत्यनिष्ठा से  काम  नहीं कर सकते .

पैरेडाइमस  परिवर्तन की शक्ति-    पैरेडाइमस  सिद्धांत वाक्य का प्रयोग  सबसे  पहले थामस कुहुन ने  अपनी  बेहद   प्रभावशाली और   महत्वपूर्ण  पुस्तक  द. स्ट्रक्चर ऑफ़ साइंटिफिक रेवोल्यूशन में किया था!  वैज्ञानिक प्रयास के क्षेत्र में  यह महत्वपूर्ण  सफलता परम्परा  तोड़ने, सोचने  के पुराने पैरेडाइमस  में परिवर्तन  करने  से  हाशिल हुई है। 

  आज का अमेरिका  भी  पैरेडाइमस   शिफ्ट परिवर्तन  का ही  परिणाम  है , सदियों तक  अमेरिका में शासन के बारे में राजशाही तथा सम्राट के  देवी  अधिकार की पारंपरिक  अवधारणा प्रचलित  थी तभी एक अलग   पैरेडाइमस   का विकास हुआ  और परिणाम यह   हुआ की सदियों तक  शासन  के बारे  राजशाही तथा सम्राट   के देवी  अधिकार की पारम्परिक  अवधारणा   एक अलग पैरेडाइमस   में परिवर्तन हो गया   जनता  का जनता  के द्वारा  और जनता के  लिये शासन  इस तरह एक संवैधानिक लोकतंत्र  का जन्म  हुआ  जिससे  आधुनिक  मानवीय ऊर्जा  और  योग्यता  उत्पन  हुई   तथा  जीवनस्तर, स्वतंत्रता ,  और आशा के  ऐसे  स्तर  की रचना हुई जिसकी  मिसाल  दुनिया के  इतिहास  में  कही  नहीं   मिलती है!

   जरुरी नहीं है की सभी   पैरेडाइमस  परिवर्तन सकरात्मक  दिशा में हो अपने  एक कहानी सूनी होगी  की  एक बार  एक ब्यक्ति  अपने बचे के साथ  ट्रेन से  जा रहे था तभी  उसका  बच्चा  अपने पिता  से कहता  है की  पिताजी देखिये  पेड़ चल रहे है उसके पिता   उसे देखकर  मुस्कुरा देते  है  सामने   बैठा  ब्यक्ति उसके पिता से कहता है की आपके बचे को नहीं मालूम  की पेड़ नहीं ट्रेन चल रही है, तभी उसके पिता बातते है की आज उसका बचा पहली बार आंख देख रहा है  आज  ही उसके  बचे  के आंख का ऑपरेशन  हुआ  जिसे  सुनकर  ब्यक्ति के   चहरे  पर  मायूसी  छा  जाती  है  इस तरह  पैरेडाइमस  घटना के अनुरूप   बदल जाता है.

अति  प्रभावकारी लोगो की  7 आदतों  को हर ब्यक्ति द्वारा अपने जीवन में आत्मसार करना चाहिये   जो इस प्रकार है-

  प्रोएक्टिव  होना   -    जब हम कोई   काम करते है,  तो उस  कार्य के लिये हम स्वयं जिम्मेदार होते हे,  हमारा व्यवहार हमारी परिस्तिथियो का नहीं, बल्कि हमारे निर्णय का परिणाम है. हम भावनाओं को जीवन मूल्यों के अधीन रख सकते है और हमारे पास आपने मनवांछित परिणाम को हाशिल करने के लिये पहल करने की शक्ति है और अपनी जिम्मेदारी  को पहचानते  है,  प्रोएक्टिव ब्यक्ति की पहचान होती है की वे अपने   जिम्मेदारी  को पहचानते  है वे  अपने  व्यवहार के लिये परिस्तिथियो को दोष नहीं देते है उनका व्यवहार अपने चुनाव का परिणाम है जो जीवन मूल्यों पर आधारित नहीं होता है प्रोएक्टिव ब्यक्ति अपने समय को अपने साथ लेकर चलते है इससे उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता है वे अपने जीवन मूल्यों से संचालित होते है और गुणवत्तापूर्ण कार्य करना उनका जीवन मूल्य है वे इस बात से प्रभावित नहीं होते है' मौषम उनके अनुकूल है या नहीं !

प्रोएक्टिव ब्यक्ति अपने जीवन मूल्यों के द्वारा संचालित होते है जिन्हें वह स्वयं सवधानी पूर्बक विचार करके चुनते है और अपने जीवन में अपनाते है प्रोएक्टिव ब्यक्ति बाहरी उदीपनो से प्रभवित नहीं होते है चाहे वे शारीरिक हो सामाजिक या मनोवज्ञानिक हो प्रायः आपका अपने जीवन में दुसरे ब्यक्ति द्वारा कई बार आपका अपमान किया जाता है अपमान होने के बाबजूद भी यदि आप स्थिर रहते तो आप प्रोएक्टिव है आप प्राय किसी कार्यालय निजी या सरकारी कार्यालय में काम करते है और वहा आपका अपमान होता या किया जाता है यदि फिर भी आप स्थिर रहते है तो यह प्रोएक्टिव है भले ही यह आपका अपना ब्यक्तिगत निर्णय होगा की आप उस कार्यालय या संस्था के लिये काम करे या ना करें प्रोएक्टिव ब्यक्ति अपने प्रयासो को अपने प्रभाव के केंद्र पर कन्द्रित करते है वे उन चीजो पर काम करते है जिनके बारे में वे कुछ कर सकते है उनकी उर्जा की प्रकति सकरात्मक व ब्यापक , विस्तार करने वाली होती है परिणामस्वरूप उनका प्रभाव का वृत्त बड़ा हो जाता हे.

दूसरी और रिएक्टिव ब्यक्ति अपने प्रयासों को चिंता के तल पर केन्द्रित करते है वे दुसरो की कमजोरियों अपने परिवेश की समस्याओं तथा उन परिस्तिथियो पर ध्यान कन्द्रित करते है जिन पर उसका कोई नियत्रण नहीं होता है इसका परिणाम यह होता है की उनका नजरिया दुसरो पर दोष लगाने का होता है उनकी भाषा रिएक्टिव होती है इस फोकस की वजह से नकरात्मक उर्जा उत्पन होती है इस वजह से वे उन चीजों को नज़र अन्दाज कर देते जिनके बारे में वे कुछ कर सकते थे या इन तरीको से प्रभाव का वृत्त छोटा हो जाता हे

प्राय हमे अपनी ज़िन्दगी में जिन तीन समस्योंओ का सामना करते है वे इन तीन क्षेत्रों में से किसी एक में क्षेत्र में आती है

प्रत्यक्ष ​नियन्त्रण - प्रत्यक्ष नियन्त्र वे समस्याओ है जिनका संबध हमारे अपने ब्यवहार से होता है जब हम किसी का अपमान करते है तो सामने वाला ब्यक्ति भी हमारा अपमान करता है, यह अपमान का सबध हमारे अपने ब्यवहार से होता है. प्रत्यक्ष नियन्त्रण की समस्योंओ को हम अपनी आदतों पर काम करने से सुलझाते है ये हमारे प्रभाव के तत्व में होते है !

प्रत्यक्ष नियन्त्रण की- प्रत्यक्ष नियन्त्रण की समस्याओं का सबध दुसरो के ब्यवहार से होता हे प्रत्यक्ष नियन्त्रण हमारे प्रभाव की विधियों को बदलकर सुलझाई जाती है.

जीरो ​नियन्त्रण- वे समस्याओं जिनके बारे में हम कुछ नहीं कर सकते ये स्थिति विशेष की वास्तविकता है भले ही हम इन समस्याओं को पसंद न करते हो परन्तु इसके बाबजूद हम मुस्कराते है इन समस्यायो को शांति से स्वीकार करते है, और इनके साथ जीना सीखते है, इस तरह हम इन समस्याओं को स्वयं को नियंत्रित करते है, हम इन समस्याओं को स्वयं को नियंत्रित करने की नहीं देते हे.

चाहे समस्या प्रत्यक्ष, प्रत्यक्ष, जीरो नियन्त्रण की हो उसके समाधान की दिशा में पहली कदम उठाना हमारे हाथ में होता है, हमारे प्रभाव के वृत्त में होता है की हम अपनी आदतों को बदल ले अपने प्रभाव की विधीयो को बदल ले जिससे हम जीरो ​नियन्त्रण की समस्यों को देखते है.

कुछ लोग यह सोचते है की प्रोएक्टिव का अर्थ आपतिजनक , आक्रमक या असवेदनशील होता है परन्तु ऐसा कतई नहीं है प्रोएक्टिव ब्यक्ति आक्रमक नहीं होते वे बुद्धिमान होते हे और अपने जीवन मूल्यों द्वारा संचालित होते है वे वास्तविकता का विश्लेषण करते है और जानते है की किस चीज़ की जरूरत है!

ओल्ड टेस्टामेंट की एक कहानी मुझे विषेश प्रिय हे, जो यहूदी - ईशाई पारम्पर के मूलभूत ढाचे का हिस्सा है , यहाँ जोशेफ़ की कहानी हे , जिन्हें 17 साल की उम्र में उन्हें उनके भाइयो ने मिश्र में दास के रूप में बेच दिया था कल्पना कीजिये की जोसेफ के लिये यह कितना आसन होता की वे बोतिफेर के दास के रूप में खुद पर तरस खाते हुऐ दुःख के सागर में डुबकिया लागते अपने भाइयो तथा अपने मालिक की कमजोरियों पर ध्यान केन्द्रित करते और विलाप करते परन्तु जोसेफ प्रोएक्टिव थे उन्होंने बन सकता हू पर जोर दिया और कुछ ही समय बाद वे अपने मालिक बोतिफेर का पूरा ब्यापार सम्भालने लगे बोतिफेर को जोसेफ पर विश्वास था उन्होंने जोसेफ को अपनी सारी सम्पति का प्रभारी और कर्ता- धर्ता बना दिया फिर वह दिन आया जब जोसेफ एक मुस्किल पारिस्थिति में फस गये परन्तु उन्होंने अपनी इमानदारी से समझोत्ता करने से इंकार कर दिया इसके परिणामस्वरूप उन्हें अननायपूर्ण तरीके से तरेह साल के लिये जेल में डाल दिया, परन्तु एक बार फिर वे प्रोएक्टिव बने उन्होंने अपने अंदरूनी प्रभाव के तत्व पर काम किया और होता है के बाजए बन सकता हू पर जोर दिया इसकी बादोलत वे जल्दी ही जेल का संचालन करने लगे और पुरे मिश्र का मार्गदर्शन करने लगे उन्होंने इतनी प्रगति कर ली की वे सम्राट के बाद दुसरे स्थान पर आ गये!

 इस तरह प्रोएक्टिव हमे सिखाता है  की   हमें अपने बुरे  समय में  किस तरह रहना और समस्याओ  समना  करना चाहिए.

 किसी भी काम को करने से पूर्ब  उसके परिणाम की  को  देखे- अंत को ध्यान में रखकर   शुरु  करने  का मतलब अपनी  मंजिल को अच्छी तरह समझकर  यात्रा  शुरु करना  है इसका  अर्थ यह  समझाना है  की  आप  कहा जा रहे है   ताकि आप  बहेतर  ढंग से यह  जान  सके की आप   बर्तमान में कहा है  ताकि आपके कर्तब्य  के सामने सही  दिशा में हो  जब  हम वास्तव में यह  जान लेते  है  की  हमारे  लिये कौन सी चीज़  सचमुच महत्वपूर्ण है   जब हम  उस तस्वीर  को ध्यान में रखकर  हर दिन  अपना  प्रबंधन करते है और  वहीं  काम  करते हे  जो सचमुच  हमारे  लिये  सबसे महत्वपूर्ण  है  तो न  हमारे  जीवन  में बहुत  बड़ा  फर्क  पड़ता है  अगर  सीढ़ी  सही  दिवार  से न टिकी  हो तो   हमारा  हर कदम  हमे  ज्यादा  तेजी  से गलत  जगह की और  ले  जाता है और  हो सकता है  हम  बहुत  ब्यस्त हो , बहुत कार्य - कुशल हो परन्तु  हम सचे  अर्थ में  प्रभlवकारी  तभी  होंगे , जब  अंत  को ध्यान में रखकर शुरु करगे.

अन्त को ध्यान में रखकर  शुरु करे इस  सिद्धांत  पर आधारित है , की  सभी  चीज़े दो बार  बनती  है , सभी  चीज़े की प्रथम  रचना  मानसिक  होती है , और दुतीय रचना  भौतिक होती है !

 जब हम किसी मकान  का नक्शा बनाते है , और  तय करते  की  हमारा  किचन  किधर होगा, रूम किस तरफ  होंगे, बैठक  कक्ष,  जहाँ पूरा परिवार  के लोग  सहजता  से एक साथ उठ- बैठ सके  हम  आगन की योजना  बनाते है , जहा  बचे खेल  सके आप  काफी   महनेत से सोचते  है  और  मकान  का ब्लूप्रिंट  बनाते है और  निर्माण- योजना    तैयार   करते हे, यहाँ  जब  मकान   की   नीव  रखने  से पहले  किया  जाता  है अगर   हम   ऐसा  नहीं  करते  है , तो  आपको  दुतिय  रचना यानी   भौतिक  निर्माण  में परिवर्तन करना  होगा आपको यह  बहुत  महंगा पेड़गा, जिसके कारण  आपके घर की  लागत  दुगनी हो सकती है ,  आपको यह तय करना होता है  की प्रथम  रचना की ब्लूप्रिंट  सचमुच वही है , जो आप  चाहते है , और आप अपने हर चीज़ के बारे  में अछी  तरह  विचार  करते  है  इसके   बाद  ही  आप  मकान  को  सीमेंट और ईट  से  बनाते हर दिन आप  निर्माण  स्थान पर जाते है  और ब्लू प्रिंट  निकलकर  देखते  है  क्या बनेगा आप  अन्त को ध्यान में रखकर शुरु करते है  इसी प्रकार   यदि हम बच्चों  का पालन-पोषण के बारे में भी सोचते  है  अगर  आप  बच्चों को जिम्मेदार  और आत्म अनुशासन  बनना  चाहते है तो अपने बच्चों  के साथ दैनिक  ब्यवहार  में आपको  इस  लक्ष्य को स्पष्टता से  ध्यान में रखना होगा  आप   उनके साथ   ऐसा ब्यवहार नहीं कर सकते  है , जिससे  उनका  आत्मअनुशासन या  आत्मसमान न करे लोग इस सिद्धान्त  का प्रयोग  कमावेश  जीवन  के  अधिकाश  क्षेत्रों  में करते  है और  सर्वोत्तम  मार्ग से यात्रा करने की योजना  बनाते है .

  पहली  चीज़ को पहले रखे - तीसरी आदत  को  हम टाइम मैनेजमेंट के नाम भी जानते है   टाइम मैनेजमेंट  के क्षेत्र  में सर्वश्रेष्ठ चिंतन  का  सार एक वाक्य में समाहित किया  जा सकता है

 अपने  कामो  को  प्राथमिकता के आधार  पर  ब्यवस्थित करे और  उस पर  अमल करे यह  वाक्य टाइम मैनेजमेंट  अवधारणा की  तीन  पीड़ियो के विकास   का प्रतिनिधित्व  करता है। 

यह  लक्ष्य  निर्धारण  करने  पर  ध्यान  केन्द्रित  करता है  विशिष्ट दीर्घकालीन  और  अल्पकालीन  लक्ष्य  है यह  पीढ़ी  अपने  जीवनमूल्यों में सामजस व लक्ष्यों  की प्राप्ति  की दिशा  में  अपना  समय लगाने  पर जोर देती है  इसमें  देनिक  योजना  बनाने की अवधारणा   भी शामिल है   जिसका अर्थ  है  की  आपके  द्वारा  निर्धारित  लक्ष्यों  और  गतिविधियों को हासिल  करने  के लिये  आपके  पास  एक स्पष्ट योजना  होनी चाहिये!

 उदा.  के  तौर  पर यदि आप  किसी  स्कूल  कालेज  के विधार्थी है , तो आपके  अपना  समय  व लक्ष्य  का निर्धारण  पूर्ब  में ही  कर लेना  चाहेये  ताकि  आपके  स्कूलकालीन, व कॉलेज की पढाई  पूरी   होने  पर आप आगे अपना कार्रियर बना  सके,  होता क्या है कुछ विधार्थी  अपने  विद्यालयीन  समय  में  अपने लक्ष्य का निर्धारण  नहीं कर पाते है , जिस कारण  वह अपने  जीवन में  उन्हें  घोर  निराशा  का सामना  करना पड़ता  है   जब  हम अपने   लिये सही  लक्ष्य  का चयन कर  लेते  तो उसे पाने में समस्या का सामना नहीं करना पड़ता है!

 जीत- जीत सोचे -  जीत जीत  मानवीय  ब्यवहार  का समूचा  दर्शन है  , यह   ब्यवहार के  छह पैरेडाइमस में से एक है।    

जीत/ जीत-  यह इस पैरेडाइमस पर आधारित है  की  सभी के लिए बहुत  है   एक ब्यक्ति  की सफलता  का  अर्थ   दूसरे   की  असफलता   नहीं  है। सफलता  दूसरो   की  कीमत पर  उन्हें  सफलता  के दयारे से  बाहर  रखकर  प्राप्त नहीं  की जाती है यह इस भावना से की जाती है, की आप  भी जीते में भी जीते  आप भी  सुखी रहे में भी सुखी रहू!

जीत/ हार- जीत-हार  तानाशाही   की  लीडरशिप  शैली   है में जीत जायूंगा आप हार जायंगे  जीत /हार की मानसिकता वाले लोगो  में जीतने  या   अपना  लक्ष्य  पाने के लिये  अपने पद,  शक्ति , परिचय , स्वमित्व   की वस्तुओ  या  ब्यक्तिव  का प्रयोग  करने की प्रवृति  होती है आधुनिक शिक्षा जगत  हार-जीत की स्क्रिप्ट  को और अधिक  शक्तिशाली बनता है सामान्य  वितरण वक्र ( Normal  distribution  curve)  मूलतः बताता है की  आपको  "ए" ग्रेड  इसलियें  मिला, क्योंकि  किसी  और को  " सी"  ग्रेड  मिला है  यहा  किसी  विधार्थी के मूल्य  का आकलन   बाकी बिद्याथी  से तुलना  करके  करता है, आन्तरिक मूल्य  पर  कतई ध्यान नहीं   दिया  जाता  हर  विद्यार्थियों को   बाहय रूप  से परिभाषित  है  विद्यार्थियों को उनकी   समता या उनके पूरे  प्रयोग के हिसाब  से ग्रेड  नहीं मिलते है और  ग्रेड  सामाजिक मूल्य  के  सवाहक है  वे  अवसर का द्वार  खोलते  या  बंद  करते है प्रशसनिक प्रक्रिया  के केंद्र  में सहयोग  नहीं , बल्कि  प्रतिस्पर्धा है  सच  तो यह  है  की सहयोग  नहीं बल्कि  प्रतिस्पर्धा है सच  तो   यह  की  सहयोग  को आम तौर  पर नकल के साथ  जोड़ा जाता है!

एक  और माध्यम है कानून  हम  एक  ऐसे  समाज में  रहते है, जिसे  मुक्दामेबाजी  हमें पसंद है जब  भी लोग  किसी मुश्किल में पड़ते हे, तो ज्यादातर  के मन  में पहला  विचार  यह आता है की किसी पर मुकदमा  ळोक  दे उसे  अदालत  में  घसीटकर  ले  जाये  और किसी  दुशरे को हराकर  खुद को  जीत ले  परन्तु  रक्ष्यात्मक मस्तिष्क न तो  रचनात्मक  होते , न ही सहयोगी!

 हार-जीत-   हार-जीत  तो जीत-हार  से भी बुरी है, क्योंकि इसके  कोई  मानदंड  नहीं है न कोई मांग, न कोई अपेक्षा न ही  भविष्य दृष्टि  जिन लोगो  की मानसिकता  हार-जीत  की होती वे आम तौर  दुशरो  को खुश  करने या सतुष्ट  करने  में तत्परता  देखते है वे  लोकप्रियता  या  स्वीकृति के  माध्यम से शक्ति चाहते है उनमे  अपनी   भावनाओ   और विश्वाशो को ब्यक्त  करने का साहस नहीं होता  और वे  दुशरे  के  अह की  शक्ति  से डर जाते है जीत  हार  की मानसकिता  वाले  लोग  हार-जीत  की मानसिकता  वाले  लोगो  से प्रेम  करते  है,  क्योंकि वे उन्हें  अपने आहार  बना सकते है वे उनकी  कमजोरियों  को पसंद करते है , क्योंकि  वे उनका  लाभ उठाते है वे कमजोरियों  उनकी  शक्तियो की  पूरक होती है जो लोग लगातार अपनी  भावना को दबाते है, जो भावनाओं  को सतर्कता  के अधिक  उच्च स्तर  तक  नहीं  ले जाते , वे पाते है की इससे  उनके  आत्मसमान की  गुटवत्ता  पर   प्रभाव पड़ता है!  जीत-हार और हार-जीत  दोनों ही कमजोर  स्थितिया  है जिनका  आधार  ब्याक्तिगत  असुरक्षा है कम समय में जीत-हार  से अधिक परिणाम  मिलेगे, क्योंकि  यह  अक्सर   सफल लोगो  की महत्वपूर्ण  शक्तियो और  का गूढ़ो का  लाभ  लेता है हार-जीत  की  मानसिकता शुरु से ही कमजोर  और बुरी  हालत  में  होती है! 

  हार-हार- जब हार/ हार वाले मानसिकता वाले दो लोग  आमने- सामने  होते है- यानी जब  दो सकल्पवान, जिद्दी लोग  और अहंकारी ब्यक्ति  आपस में ब्यवहार करते है तो दो परिणाम हार-हार होगा !  दोनों ही  हारगे  दोनों ही  प्रतिशोध  लेना  चाहेंगे वे  भले  ही इस  प्रयास में वे  भी  यह सिर्फ  यह   इच्छा रहती है की  वह ब्यक्ति  हार जाये , भले ही इस  प्रयास में वे भी  हार जाये  हार-हार की मनसिकता शत्रुतापूर्ण एव  संघर्षपूर्ण और युद्ध का जीवन दर्शन है!

 जीत-जीत या कोई सौदा नहीं  की मानसिकता  पारिवारिक संबंधो  में  जबरदस्त  भावनात्मक स्वतंत्रता प्रदान करती है अगर  परिवार  के सदस्य  किसी  ऐसा  विडियो   पर  सहमत नहीं  हो पाते , जिसे  देखने  में सबको आनंद  आये  तो  वे  कोई और  काम  करने  का निर्णय  ले सकते  है कोई सोदा नहीं  है के बजाय  इसके की  कुछ लोगो  को दुशरो की खातिर अपनी  शाम का आनंद  छोड़ना पड़े!

पहले  समझने  की कोशिश करे, फिर  समझे जाने की  -  पहले समझाने  की कोशिश करे   में एक बहुत  गहरा  परिवर्तन  शामिल  है, हम आम तौर पहले  समझा  जाये या अधीकंश लोग समझने  के इरादे  से नहीं  सुनते  है, बल्कि  वे  जबाब  देने  के    इरादे   से सुनते है,  वे  या तो  बोल रहे होते है या  बोलने  की तैयारी  कर रहे  होते है वे  हर चीज़  को  अपने  खुद  के पैराडाइम से फिल्टर  करते है और  दुसरो  के जीवन  में अपनी  आत्मकथा को थोपते  है  जब हम सुनने  की बात करते तो इसका  मतलब है समझने  के इरादे  से सुनना  पहले  समझने   की  कोशिश  करना या  सचमुच समझने   की कोशिश करना यह एक  बिलकुल  ही अलग  पैरेडाइमस है!

 सुनने का अर्थ  किसी  दुशरे  ब्यक्ति  के संदर्भ  मानदंड  के   भीतर  पहुचना है आप उसकी अनुभूति  के माध्यम  से देखते  है जिस  तरह  वह देखता  है, आप   दुनिया को उसी तरह से देखते उसके  पैराडाइम को समझते है, आप  यह भी   समझते  है की वह कैसा  महसूस करता है संप्रेषण विशेष्यक्षो   का अनुमान है, की   हमरा  सम्प्रेषण  10 प्रतिशत  हमारी   ध्वनियो  के माध्यम से होता  और  60  प्रतिशत  हमारी  बॉडी लैंग्वेज   के माध्यम  से होता है इसके अलवा आप  अपने  आँखों  और दिल  से भी सुनते  है आप  सामने वाले  की भावना  को सच्चे अर्थ में समझने  के लिये  सुनते है आप  उसके ब्यवहार  को  समझने  के लिये सुनते  है आप अपने मस्तिष्क के दाये   और बाय दोनों    हिस्सों का  प्रयोग  करते है आप महसूस करते है  सुनना इसलिए  बहुत  शक्तिशाली है  क्योंकि  यह आपको  कर्म करने के लिये त्रुटिहीन  जानकारी देता है  खुद  की आत्मकथा थोपने  के बाजए  आप किसी दुशरे के दिल  और दिमाग की  वास्तविकता  को समझते है  आप  समझने के लिये  सुनते है आप सामने वाले की आत्मा के गहन सन्देश  प्राप्त  करने   पर  ध्यान करते है.

सिनर्जी का प्रयोग करे कोई पूर्ण चीज़  अपने  हिस्सों के योगफल  से अधिक बड़ी  होती है  इसका  अर्थ  है की  हिस्सों   का एक - दुसरो  के साथ  जो संबध है वह भी अपने  आप  में एक हिस्सा  है यह सिर्फ  हिस्सा नहीं  है बल्कि  यह सबसे उत्प्रेरक, सबसे  शक्तिशाली  सबसे एकात्मक  और  सबसे  रोमांचक हिस्सा है  सिनर्जी प्रकति में  चारो तरफ है, अगर  आप दो  पोधो  को  नजदीक  लगा दे तों उनकी  जड़े आपस  में मिल  जाती है,  और मिटटी की गुडवत्ता  सुधार   होता  है,  ताकि  दोनो  पोधो उससे  बेहतर  ढंग से बढ सके, जितना  वे अलग - अलग बढ  सकते  थे अगर आप लकडी के दो  टुकड़े को आपस  में जोड़ दे  तो वे मिलकर  उससे  अधिक  बोझ  सह सकते है  जितना  वे अलग- अलग सह  सकते है  पूर्ण  चीज़ अपने हिस्से के योगफल  से अधिक  बड़ी  होती है पूर्ण   तीन के बराबर  हो सकते है या  उससे  भी अधिक हो सकते है एक पुरुष और एक महिला  जिस तरह एक बच्चे को  दुनिया में लाते है, वह सिनर्जी का ही  रूप है,सिनर्जी का सार  मतभिन्नताओ को महत्व  देना है उनका   सम्मान करना, शक्तियों  को  बढाना है , कमजोरियों की भरपाई करना है! 

आरी की धार तेज करे-  एक समय की बात है एक जंगल में एक लकडहारा रहता था वह जंगल में लकडी को काटने का काम करता था,  एक समय जब वह लकड़ी कट रहा था  तो उसे काटने में  अधिक समय लग रहा था ,  उसी  समय  वहा से एक साधु गुजर रहा था उसने देखा की लकडहारा परेशान दिख रहा है तो साधु न  उससे पूछा की  क्या बात है जो आपको चिंतित कर रही है, तो लकडहारा ने बताया की वह  तीन घंटे से पेड़ कट रहा है परन्तु पेड़ काटने का नाम ही नहीं ले रहा है तो साधु ने बताया  की तुम क्यों न  अपनी आरी की धार तेज करो फिर पेड़ काटना  जब उसने यह किया तो पेड़ कुछ  ही समय में कट गया इससे हममे सिख मिलती  है  की हमें  पहले अपने मन को शाफ रखना  चाहिये आत्म नवीनकरण  के तीन  आयाम , शारीरिक, आध्यात्मिक,  मानसिक !

 शारीरिक आयाम-    शारीरिक,आयाम  में हमारे  भौतिक शरीर  की प्रभावकारी  देखभाल करना शामिल है- सही  तरह का भोजन करना , पर्याप्त आराम और  विश्राम करना तथा नियमित  रूप से  ब्यायाम  करना  अच्छा ब्यायाम  कार्यक्रम  वह है जिसे  आप अपने घर पर ही  कर सकते  हो   और  जो  आपके  शारीर का  विकास करे  सहनशक्ति  लचीलापन  और शक्ति  सहनशक्ति   एरोबिक ब्यायम से मिलती  है.  उदा.  तेज चलना  दोडाना, साइकिल  चालने,  तेरना, जॉगिंग इतियदि। 

  ब्यायाम  से आपको  सम्भवतः  सबसे बड़ा लाभ यह मिलेगा की  आपकी  पहली आदत  की प्रोअक्टिविटी  की माशपेशियों  का विकास  होगा जो शक्तियों  बजाय  शारीरिक स्वास्थ्य के  जीवन  पर  आधारित ब्यायाम करने  से  दूर  रखती है जब आप उन  पर  प्रतिक्रिया  करने के  बजाय  शारीरिक  स्वास्थ्य  के जीवन  मूल्य  पर आधारित ब्यायाम करते है, तो  इससे  आपके  आत्मसमान आपके  आत्मविश्वाश आपकी  अखंडता  और आपके अपने  बारे  में आपके  पैरेडाइमस  पर गहरा  प्रभाव पड़ेगा !

 मानसिक आयाम-   हमारा अधिकांश मानसिक विकास  और अध्यन-अनुशासन ओपचारिक शिक्षा के  माध्यम  से होता है परन्तु जेसे  ही हम  स्कूल के बाहरी  अनुशासन को छोङते  है हममे से  बहुत  से लोग अपने दिमाग पर जोर  डालना बंद कर देते है एक अध्ययन से पता चला है की  अधिकांश घरो में टेलिविज़न एक सप्ताह  में 35 से  45 घंटे  तक  चलता है यह अविध अधिकांश लोगो द्वारा अपनी  नौकरियों में लगाये  जाने  वाले समय के बराबर है यह अविध  अधिकांश बच्चों द्वारा अपने स्कूल-कॉलेज  में लागये जाने वाले समय से अधिक है टीवी आज का सबसे  शक्तिशाली सामाजिक प्रभाव है और जब हम इसे देखते  है, तो हम  इसके  माध्यम से   सिखाये जा रहे जीवन मूल्यों के सम्पर्क में आते  है,   वे बहुत    लघु और  अद्रश्य  तरीके  से हम  पर शक्तिशाली  प्रभाव  पडता स्टीफेन कवी कहते है उनके घर में टीवी प्रति सप्ताह  सात घटे तक सीमित कर  रखा है, यानी  हर दिन औसतन लगभग एक घंटा  उन्होंने  एक परिवारक बैढ़क की, जिसमे  उन्होंने इसे  बारे  में चर्चा की और  इस जानकारी  पर विचार किया  की टीवी के कारण परिवारों में क्या हो रहा है उन्होंने पाया की जब परिवार का कोई भी सदस्य   रक्ष्यात्मक   न हो या बहस के मूढ़ में न तब परिवार  में ऐसे  चर्चा करने से सदस्यो को यह एहसास  होने  लगता है की  टीवी  सीरयल  की लत  लग चूकी है उन्हें  निर्भरता की बीमारी   हो गयी  है या उन्हें न  किसी  खास कार्यक्रम  की लगातार   खुराक  की आदत पड़  चुकी है  शिक्षा सतत शिक्षा,मस्तिष्क को   निरंतर  तेज करना और इसका  लगातार  विस्तार करना- अत्यंत महत्वपूर्ण  मानसिक  नवीनीकरण हेे!

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